मेरी बेटी
आज सुबह जब शैलजा अपने स्कूल में बैठकर अपने कुछ काम में व्यस्त थीं तभी उसे उसकी पुरानी स्टूडेंट फ़िज़ा उसकी ही तरफ आती हुई दिखाई दी,बहुत प्रिय छात्रा थी वो शैलजा की।विगत वर्षों में पढ़ाई के दौरान अचानक फ़िज़ा की माँ की प्रसव के बाद असामयिक मृत्यु हो गई थी, फ़िज़ा के अब्बू शैलजा से मिलने के लिए स्कूल में आये थे बताने की अब वह अपनी बेटी फ़िज़ा को आगे नहीं पढ़ा पाएंगे क्योंकि घर पर उसके 3 छोटे बच्चों की देखभाल करने के लिए कोई भी नही है। फ़िज़ा की दादी भी काफी बुजुर्ग हैं वो अब बच्चों की देखभाल और घरेलू काम काज में बिल्कुल असमर्थ हैं हाथ जोड़कर उस अधेड़ पुरूष ने अपनी बेटी को पढ़ाने में पूरी असमर्थता जताई और बोला कि फ़िज़ा अब कल से स्कूल नही आएगी क्योंकि घर में बच्चों के साथ साथ कुछ मवेशियों जैसे मुर्गी बकरी को भी देखना है। उसकी माँ थी तो वह सब संभाल लिया करती थी लेकिन अब तो हम बहु विवश हैं।
शैलजा ने बिना कोई उत्तर दिए अपने हावभाव से सहमति व्यक्त कर दी पर न जाने क्यों कल से फ़िज़ा का स्कूल न आना उसे जरा सा भी अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि फ़िज़ा बहुत होनहार लड़की थी। अपनी पढ़ाई के साथ साथ वह अन्य गैर शैक्षणिक क्रिया कलापों में जी जान से जुट जाती थी। फ़िज़ा द्वारा स्कूल के लिए कई जीते हुए मेडल आज उसके ऑफिस की शोभा बढ़ा रहे थे। उसे नाज़ था फ़िज़ा पर कि ये लड़की बहुत आगे जाएगी हर क्रिया कलाप तो फ़िज़ा के बिना पूरा हो ही नहीं पता था। स्कूल मे रंगोली बनाने से लेकर अन्य विद्द्यालयो के साथ हर प्रतियोगिता में उसकी सहभागिता रहती थी खैर कोई बात नहीं सब कुछ वैसे ही चल रहा था लेकिन अब फ़िज़ा के बिना ही… .
फ़िज़ा मुस्लिम समुदाय की होते हुए भी हमेशा हिन्दू स्टूडेंट्स की तरह मिलने पर पैर छूती थी आज फिर शैलजा अपने ऑफिशियल काम में व्यस्त थी कि किसी ने उसके पैर छुए और आवाज़ जानी पहचानी सी लगी जब उसने कहा है कि कैसी हो आप?
शैलजा ने अपना काम बंद करके देखा तो एक बहुत ही खूबसूरत तीखे नाक नक्श की लम्बी दुबली पतली लड़की उसके सामने खड़ी थी शैलजा ने उसका हाल पूछा तो उसने भी इशारा करते हुए स्वयं को ठीक बताया ।फ़िज़ा ने कहा कि मैंम आपको याद है न वह दिन जब मेरी माँ हमसभी को छोड़ कर चली गई थी और मैं आखिरी दिन स्कूल आई थी। पूरी तरह से बदहवास चीख रही थी अपनी माँ के लिए तब आपने हमें संभाला था और अपने सीने से लगाकर मेरे आंसू पोछकर मुझे हिम्मत दिया था और ये शब्द कहा था कि तुम मुझे अपनी माँ समझो कोई परेशानी होती है तो मुझे आकर बताओ। तो मैं ये पूछना चाहती हूं कि आपने मुझे अपनी बेटी माना था कि मुझे आपने मात्र हिम्मत बंधाया था आगे की परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए…..
नहीं नहीं …तुमको तो मैं आज भी अपनी बेटी मानती हूँ मेरे स्कूल की सभी बच्चियां मेरी बेटी हैं।तो फ़िज़ा ने कहा कि क्या आप मेरे लिए माँ का एक फ़र्ज़ निभाएंगी शैलजा सकपका गई कि फ़िज़ा जाने क्या कह बैठे….
इसकी माँ की मृत्यु के बाद मैं ने तो बस ऐसे ढांढस बंधाया था जैसा कि एक टीचर को अपने स्टूडेंट्स के साथ सहानुभूति होनी चाहिए बस इतना ही इससे ज्यादा तो कभी सोचा भी नही था।
फिर भी शैलजा ने बड़े अपनेपन और प्यार से फ़िज़ा से क्या बात है बताने के लिए कहा
उसने कहा कि अपनी माँ के जाने के बाद मैंने आपको अपने माँ से भी बढ़कर माना है जानती हैं क्यों
क्योंकि आपके धर्म में माँ को मातृ देवो भव मानकर पूजा की जाती है। नवरात्रि में भी देवी माँ की पूजा करते हैं आपलोग आपकी देवी माँ भी भक्तों का दुःख दर्द दूर करने के लिए धरती पर आती हैं लेकिन मैम मेरे धर्म में तो माँ की पूजा भी नहीं होती है और मेरे पास तो मेरी माँ भी नही है अब मेरी मदद कौन करेगा। अपनी देवी माँ और आप दोनों मुझे मिलकर बचा लीजिए आने वाला वक्त बहुत ही दुःखद है मेरे लिए …..शैलजा ने पूछा कि ऐसा क्या हो गया जो इस तरह की बातें कर रही हो
फ़िज़ा ने अपने आँसू पोछते हुए बताया कि मेरे अब्बू एक 45 साल के आदमी के साथ मेरा निकाह करवा रहे हैं जो मेरी सुंदरता का आशिक़ है लेकिन मुझे बिलकुल भी नहीं पसंद है उसने मुझे निकाह के औज़ में मेरे भाई बहनों को खिलाने पहनाने और पढ़ने का सारा खर्च उठाएगा। मेरे अब्बू ने मेरा सौदा कर डाला है अब आप बताओ न कि आप मुझे अपनी बेटी मानती हो कि नहीं ….अगर बेटी मान रही हैं तो मुझे इस दलदल में जाने से बचा लीजिए प्लीज।
फ़िज़ा की बात सुनकर शैलजा मौन थी निःशब्द निरुत्तर निरीह और विवश होकर बुत की तरह बैठ गयी शैलजा का कोई भी आश्वासन भरे शब्द न सुनने पर फ़िज़ा ने अपने हॉथ में ली हुई पॉलीथिन से एक कार्ड निकाल कर उसके मेज पर रख दिया जिस पर नाम की जगह पर लिखा था शैलजा मैम(मेरी माँ)….
शैलजा को आज तक अपने निःसंतान होने पर उतना दुःख नहीं हुआ था जितना कि आज अपनी स्टूडेंट और मुँहबोली बेटी की ज़िंदगी दलदल में जाने से न बचा पाने का था। आज फ़िज़ा का निकाह और रुखसती की रस्म अदायगी पूरी हो रही थी और शैलजा अपने सीने पर आत्मग्लानि का बोझ लिए बोझिल कदमों से अपने कर्मभूमि स्कूल पर चली जा रही थी।
शैलजा को आज निःसंतान होते हुए भी अपने जीवन में मातृत्व के कर्तव्य का एहसास हुआ और फ़िज़ा के लिए कुछ कर पाने की तड़प बहुत बढ़ गई और रात भर सो न सकी। फ़िज़ा की अब तक की सारी स्कूल से सम्बंधित गतिविधियों की जैसे फ़िल्म चलने लगी शैलजा की आँखों के समक्ष। निर्णय तो ले लिया था शैलजा ने लेकिन अब कही से कोई अड़चन न आने पाए उसके प्लान में इसलिए न धोकर आदि शक्ति माँ दुर्गा के सामने उसने फ़िज़ा की ज़िंदगी उस नर्क में जाने से बचा पाने की शक्ति की प्रार्थना कर के कर्तव्य पूर्ति तक व्रत करने का निर्णय लिया।
शादी का निमंत्रण दिन के समय का ही था इसलिए स्कूल से छुट्टी लेकर हल्की गुलाबी रंग की साड़ी पहनकर फ़िज़ा के घर की तरफ चली तो देखा कि शादी की तैयारी हो चुकी है। बस बारात आने वाली ही थी फ़िज़ा के अब्बू मैडम जी के अपने गरीबखाने मे तशरीफ़ लाने के लिए बेहद शुक्रिया अदा किया गया और ज्नानखाने की ओर फ़िज़ा के पास ले जाने के लिए अपनी बेटी फ़लक को कहा। फ़लक बहुत खुश होकर अप्पी देखो कौन आया है चिल्लाती हुए फ़िज़ा के कमरे में जहां पर वह दुल्हन के लिबास में गुमसुम बैठी थी शैलजा को पहुंचाने के बाद वो खेलती हुई बाहर चली गयी।
फ़िज़ा बहुत उदास थी और शैलजा को देखकर रोकर उसके गले लग गई। शैलजा के अंदर आने पर फ़िज़ा की सहेलियों ने भी उसे अकेला छोड़कर दुल्हा देखने के लिए बाहर निकल गईं।
शैलजा ने फ़िज़ा को समझाया कि विरोध करना सीखो और तुम अगर निकाह को कबूल करने की रजामंदी नही दोगी तो कोई भी मौलाना मौलवी तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती निकाह कबूल नही करवा सकता है। बस तुम्हे चुप रहना होगा बाकी सब मैं देख लुँगी। आश्वासन के साथ उसे अपने गले से छुड़ा कर उसे पानी पिलाने के बाद लिटाकर कुछ एक फोन किये। थोड़ी ही देर में बहुत सारी महिलाएं जो कि “महिला उत्पीड़न और शोषण विरोधी मंच”की नारे लगाती महिला सदस्यों की बाढ़ सी आ गयी। चारों तरफ के लोग हक्के बक्के हो गए कि ये क्या हो गया फ़िज़ा के अब्बू को तलब किया गया कि आप ये क्या कर रहे हैं अपनी 16 साल की बेटी की शादी 50 साल के अधेड़ उम्र के आदमी के साथ क्यों कर रहे हैं। आपको जेल भी हो जाएगी और जुर्माना भी या दोंनो। आप अपनी बेटी के लिए योग्य लड़के का चुन कर लाइये तब हम लोग आपकी खुशी में शामिल होंगे नहीं तो आपके ऊपर विधिक कार्यवाही शुरू की जाएगी। फ़िज़ा के अब्बू ने हाथ जोड़कर देखते ही फफक फफक कर रो पड़े और मैडम जी और सभी महिलाओं से माफ़ी मांगने लगे। शैलजा ने कहा कि आप तो अपनी बेटी के गुनहगार हो उससे माफ़ी मांग लीजिये उसका हँसता खेलता बचपन लौटा दीजिए यही प्रार्थना है आपसे।
शैलजा फ़िज़ा के पास उसके कमरे में गई और बोली फ़िज़ा तुमने मुझे माँ कहा था न। आज मैं अपने माँ के फर्ज़ को निभा पाई। अब तुम आज़ाद हो और मेरा व्रत भी पूरा हुआ आज से तुम अपना बचपन फिर से जियो मेरी बेटी और ऐसा कहकर फ़िज़ा को गले से लगा लिया।
श्वेता श्रीवास्तव (वसुधा)
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